A young woman is frustratedly thumping at a locked door. Her body language is depicted as slumped and exhausted, with a hint of anger. Her hair is ruffled.

A Journey From Frustration to Hope

Zafreen Neha, 26 |   Bihar, India

Translated from Hindi

I have seen and experienced the effects of the Covid-19 pandemic spreading across the country. The pandemic brought many challenges, and some inspiring experiences. Mental health care and education became huge issues for me and my community. The lockdown was suddenly announced in an atmosphere already full of fear and confusion. The whole country was ordered to stay where they were, and nobody could go or come from anywhere. There was no chance to prepare in advance. People had to run their homes with the ration they already had, and if someone had gone to another relative’s house, then they were trapped. Nobody could understand what we had to do and what not to do. Everyone was worried about what lay ahead, and how to run their households. The news was full of disappointment and death.

Access to education became more challenging than before. Private schools, meant for people with money, started online classes. Children who were studying in government schools were already being left behind in education and the lockdown worsened their condition. These students were not connected to any online classes. There were added tensions because everyone was living at home together, worried about basic things like food. Children faced the brunt of their parents fraying tempers. The lockdown made things especially difficult for girls who were being scolded, and told to do household chores. What I understood was that we should be prepared for everything that comes our way, the public as well as the government. I feel there was no proper preparation before this lockdown, due to which people faced many difficulties.

For the first time in my life, I was locked up at home like this, due to which I felt suffocated. There were many rumors being spread, and people were getting even more afraid. The world outside had gone completely silent. Where I live, the police used to come around and beat up anyone who was outside. My heart would fill with more sadness and fear after this. Everyday, I would hear people dying of either COVID-19 or by suicide due to mental stress. This impacted my own mental health. I felt that I was alone in the world, I had no one. All anyone wanted to talk about was the virus. If anyone had even a small cough or slight fever, their immediate thought was that they were infected. One day I felt like I had a slight fever, and my mother immediately started home remedies while keeping distance from me, worried about our health and lives. To avoid my mental health from deteriorating further, I started to keep myself busy by doing household chores.

Another stress was that everything was going online, and so was my work. I lacked experience of online work. Before the pandemic, I’d worked really hard to build a certain level of capabilities for everyone in the field area I work. And now I worried that all this progress would be lost, and we wouldn’t be able to catch up. I was afraid that I would lose my job because of not being able to move forward. There was a lot of concern about the financial condition of my house as well. With all these things going on in my mind I could not sleep at night. One day, my mind wandered to the thought of sucide.

On the suggestions of my seniors, I started counseling. I found out that the government runs a free counseling helpline. I tried to call this number many times but nobody ever picked up.
Private counseling had always felt unaffordable to me, but I tried it. I had a better experience there. Gradually, I started feeling a sense of relief and saw things from a better perspective. I realized that I’m not alone and young people across the country are facing similar dilemmas as me.

After some time, I started getting involved with small tasks with my organization, and started feeling a little better. We had a help desk open in lockdown, in which our organization collaborated with others, provided help to whoever needed it. People were dying of hunger in many villages and cities. The help desk would help them access rations, study materials and sanitary pads. Every organisation provided as much help as they could. For example, in the village, sanitary pads were distributed to girls along with ration, to ease their access.

In this lockdown, we gave rations, and sanitary pads to more than 2000 people and helped them fill out compensation forms. We roped in young people to teach online classes to those who were missing out on online education. We managed to connect over 500 children across 12 districts with online tutors. I got so busy doing this work that I started feeling better about my situation. In the meantime, our partner organization started online training for us which benefited me greatly. I also shared this training with the youth I work with. Slowly it seemed like things would return to normal. I continue working with the hope that things will work out one day.

कोविड -19  महामारी के पूरे देश में फैलने का प्रभाव मैंने अपने परिवार, और समुदाय में खुद देखा और अनुभव किया | इस महामारी में कई चुनौतियाँ आईं , और कुछ प्रेरणादायक अनुभव भी रहे | इनमे मानसिक स्वस्थ्य संभालना और शिक्षा तक पहुँच मेरे और मेरे समुदाय के लिए बहुत बड़े मुद्दे  बन गए । पहले से ही बन रहे डर और उलझन के माहौल में अचानक ही लॉकडाउन की घोषणा कर दी गयी | पूरा देश जहाँ था वहीँ बना रहने का फ़रमान जारी हुआ| कोई कहीं से न आ सकता था और न जा सकता था | यह जो लॉकडाउन की शुरुआत हुई उसकी पहले से कोई तैयारी नहीं की गई थी |  जिसके घर में जितना राशन था वो उसी में चलाए और अगर कोई किसी अन्य रिश्तेदार के घर गया था तो वो वही फंसा रह गया | किसी को कुछ  समझ नहीं आ रहा था की हमे क्या करना है और क्या नहीं करना है | अपनी ज़िंदगी कैसी आगे बढ़ाएं और कैसे घर चलाना है | पूरी तरह से सिर्फ परेशानी दिखाई दे रही थी क्यों की हर तरफ और न्यूज़ पर सिर्फ मृत्यु की खबर आ रही थी | कोई किसी की मदद करते हुए सुनाई नहीं दे रहा था|

 

उसी प्रकार से शिक्षा का भी हाल बुरा था | प्राइवेट स्कूल को पैसे से मतलब था  इसलिए उन्होंने ऑनलाइन क्लासें शुरू कर दी | परन्तु जो बच्चे सरकारी स्कूल में पढ़ रहे थे उनका तो पहले से बुरा हाल था और ये लॉकडाउन के कारण और भी बुरा हाल हो गया |  उन्हें किसी भी ऑनलाइन क्लासों से नहीं जोड़ा गया | सब एक साथ घर में रह रहे थे एक तो पढ़ाई की चिंता खाई जा रही थी | उपर से घर में भाई पापा की डांट, लड़कियों को बस घर के कार्यों को लेकर डांटा जा रहा था | लड़कियों का तो बुरा हाल होकर रखा था इस लॉकडाउन से | एक चीज तो समझ आई की हमे हमेशा हर एक चीज के लिए तैयार रहना चाहिए | परन्तु जनता के साथ साथ सरकार को भी इसके लिए तैयार रहना चाहिए | इस लॉकडाउन में उनकी कोई तयारी नहीं थी जिस कारण जनता को बहुत सारी मुश्किलों का सामना करना पड़ा |

 

मैं अपनी ज़िंदगी में पहली बार इस तरह घर में बंद हुई थी जिस कारण मैं अपने आप को असहज और मज़बूर महसूस कर रही थी | इधर-उधर बहुत अफवाहें  फैल रही थीं जिससे लोग और भी अधिक डर रहे थे |  बाहर बिलकुल सन्नाटा छाया रहता था | मैं जहाँ रहती हूँ वहां जब पुलिस आती थी और जो भी बाहर मिलता था उसे मारती थी | इसे देख कर दिल और भी डर रहा था |रोज किसी ना किसी की या तो कोरोना या मानसिक तनाव के कारण मृत्यु की खबर आ रही थी |  इस सब से मेरा भी मानसिक प्रभाव काफी बढ़ने लगा | मुझे ऐसा लग रहा था की मैं दुनिया में अकेली हूँ मेरा कोई नहीं है | हर समय वायरस की चर्चा हो रही थी | हर किसी को अपनी मौत की चिंता हो रही थी | छोटी सी खांसी या बुखार होने पर डाइरेक्ट उनकी सोच कोरोना पे जाती थी| मुझे जब थोडा बुखार लगा तो माँ को भी ऐसा लगा और उन्होंने तुरंत घरेलु उपचार करना शुरू किया | उन्होंने मुझसे दूरी रखी क्योंकी कहीं न कहीं उन्हें भी मेरी मित्यु और खुद की ज़िन्दगी की चिंता हो रही थी | और इस डर से मैं भी जूझ रही थी | मैं अपने अकेलेपन को लेकर काफी चिंतित थी |

 

फिर मैंने खुद को व्यस्त रखने के लिए घर के कार्यों में हाथ बटाना शुरू किया सिलाइ  सिखा | बस हर एक चीज ऑनलाइन  हो रहा था | काम भी ऑनलाइन  हो रहा था पर मेरे पास ऑनलाइन काम करने का कोई अनुभव और समझ नहीं थी | ऑनलाइन नयी चीज़ें देखने के प्रयास तो किये, पर लगा जैसे मैं किसी चीज में सक्षम नहीं हूँ |  मैं काम  को लेकर भी काफी चिंता में जी रही थी | अपने फील्ड में बहुत मुश्किल से सबको एक स्तर पर लाने के लिए मैंने काफी काम  किया था परन्तु सब कुछ पीछे चला गया था | मुझे डर  था की काम आगे न बढ़ा पाने  के कारण कही मुझे नौकरी से न निकाल दिया जाए  | घर की  आर्थिक स्थिति को लेकर भी काफी  चिंता थी |यह  सारी चीजें मेरे दिमाग में चलने के कारण मैं रात को  ठीक से सो भी नहीं पाती थी  | एक दिन तो यहीं सब सोंच सोंच कर मेरा मन ऐसा कर रहा था की मैं sucide कर लूँ |

 

सीनियर्स की राय पर मैंने काउंसलिंग लेनी शुरू की  | पता लगा की सरकार द्वारा एक मुफ्त काउंसलिंग हेल्पलाइन चलाई जा रही थी | मैंने काफी बार इस नंबर पर कॉल करने का प्रयास किया | काउंसेलर तो दूर की बात थी, मेरा तो किसी ने फोन भी नहीं उठाया | कभी आमान्य बता रहा था तो कभी false रिंग जा रही थी| | मेरे लिए प्राइवेट काउन्सलिंग कुछ बेहतर अनुभव रहा | धीरे धीरे राहत मिली और एक बेहतर नज़रिये से चीज़ें समझ में आने लगी। यह भी आभास हुआ की इस दुविधा से सिर्फ मैं नहीं जूझ रही हूँ बल्कि मुझ जैसे कई और युवा भी इसका सामना कर रहे है |

 

कुछ वक़्त बाद मैं अपने संस्था के छोटे छोटे कार्यों से जुड़ने लगी तो मुझे थोडा अच्छा महसूस होने लगा | जैसे इस लॉकडाउन में हमारी एक हैल्प डेस्क खुली थी जिसमे हमारी संस्था ने कई संस्थाओं से मिलकर इस डेस्क का उपयोग किया था | यह रोजाना 24 घंटे के लिए उपलब्ध रहता था और कोई न कोई इस समय होता था जो उनकी मदद करता था | हैल्प डेस्क के द्वारा कई गाँव और शहर में लोग भूखे मर रहे थे उन्हें राशन ,पढ़ाई की सुविधा और सनिट्री पैड की आवश्यकता थी उन्हें ये सब चीजें उपलब्ध कराया जा रहा था |  जिस संस्था से जितनी मदद हो पा रही थी, हम उतना सारे लोगो का सहयोग कर रह थे | जैसे गाँव में राशन के साथ लड़कियों के लिए सनिट्री पैड का भी प्रबंध कराया गया |

 

ऐसे में हमारी संस्था जहां जहां काम कर रही है वहां हमने इस lockdown के समय हमारे कुछ युवाओं के मदद से कोचिंग की भी उपलब्धता करवाई | यह उन बच्चों के लिए थी जो सरकारी स्कूल में पढ़ रहे है थे और उन्हें किसि भी ऑनलाइन क्लास  का लाभ नहीं मिल रहा था | इस लॉकडाउन में हमने 2000 से उपर लोगों को राशन, और सनिट्री पैड दिए और साथ ही साथ कुछ राशि के फॉर्म भी भरवाय | और जो हमारे सहयोग से कोचिंग चलाई जा रही थी उसमे 12 जिलों में कुल 500 बच्चों के साथ यह कार्य किया गया था | इस कार्य को करने में मैं इतनी व्यस्त हो गई की अब मुझे अच्छा महसूस होने लगा था | इस दौरान हमारे पार्टनर संस्था ने हमारे लिए ऑनलाइन प्रशिक्षण भी उपलब्ध कराया जो मेरे लिए काफी लाभदायक रहा | उस प्रशिक्षण को मैंने अपने युवा के साथ भी जोड़ा | फिर धीरे धीरे मेरे लिए सब कुछ पहले जैसा होने लगा और मुझे महसूस होने लगा की शायद अब धीरे धीरे सारी चीजें पहले जैसी हो जाएँगी | बस इसी आशा के साथ हम अपने कार्य को कर रहे हैं |