Caste and COVID-19: Increasing Inequalities
Mandeep Kumar, 21 | Bihar, India
Translated from Hindi
The COVID-19 virus has spread throughout the country, and caused all sorts of trouble for everyone. However, coming from a Dalit community, we faced challenges that we probably would have never thought of. I come from a middle class family. There are a total of 7 people living in the house – mother, father, a sister and 4 brothers. My father is a labourer whose income runs the household.
Covid-19 caused a countrywide lockdown leading to closure of all the schools, colleges, and institutes. All the students had to stay at their respective homes. This led to a turning point in their lives especially their access to education, which they would have never even thought about. This was especially true the students from Dalit and other backward castes communities, who anyway had very little access to resources. We saw that the outbreak of COVID-19 deepened the inequalities that have been prevalent in our society for centuries.
When I was young, I was enrolled in class 6 of a secondary school in Piya Kala village. The village was dominated by people beloging to upper castes, they could do whatever they wanted. Things like meals in school, books, scholarships, even the school dresses were first given to the students belonging to upper caste households. I asked my friends why was this happening and they just said that they are big people, we receive everything after them. If we said anything, it would cause conflict and tensions. We got the same response from the teachers. I felt quite sad at this situation because I did not face this in Benaras.
Due to this pandemic, this discrimination took new forms. At the time of lockdown, the Bihar government said that they will provide online education to all the students so that everyone is able to complete their education. However, it was seen that only few people (mainly from upper caste and class) had access to technology. There were many students of my caste and community who did not have access to resources like smart phones, laptops or even TVs, how would these students study online and complete their studies? Due to this, 8 to 10 students from my village dropped out of their school.
When the government started the train services, many people took money in advance and went to work again in places like Delhi, Mumbai, Kolkata, and Hyderabad. I wanted to do the same but instead I started teaching tuitions in my own village to the children. In my tuition, 50% of the children study for free, and I am able to complete my studies as well. I am pursuing BSc (Hons) Physics and I pay for all my expenses by teaching tuition. I want to study further, pursue a Ph.D and become a professor in an engineering college.
In April and May 2020 after the schools were closed, at least four girls were married between the ages of 14 and 16 years old. I have heard that they faced many hardships after their marriage. An pregnant youn girl was fighting for life and death, and lost her child during birth.
During Covid-19, we provided ration to the people who could not afford it, with the help of Bihar Ambedkar Students Forum (BASF). I was introduced to some new people who helped us. Before I was connected with BASF, I was unaware of my responsibilities towards the community- how people live, how the community develops, what people need, what the young people of the village aspire for. I was afraid to talk to any officers, I could not even stand in front of them. Since I got connected to BASF I am able to talk to any officer easily, without any fear.
I have been able to connect with many people through this organisation and I always try to dispel the misconceptions that are inside all of us, such as gender stereotypes, caste differences, lack of rights. I believe that along with the difficulties of COVID-19, we have to understand the pre-existing social inequalities and discrimination in our society and work towards their eradication with full enthusiasm. Only then will the dreams of youth like me will come true.
My education first started in Banaras where I studied for 3 years, after which I came to the village in Bihar and I thought of dropping out of school because I felt so helpless. There were no schools nearby and I would travel 5kms by foot to study in the nearest school. Then I enrolled in high school in 2012 and passed matriculation examination and in 2016, completed class 12 studies and passed with second division in 2018. Today I am pursuing B.Sc.(Hons) Physics part 1. I am able to meet all my education expenses by teaching tuition and working in the institution. But a lot of young people still don’t have the opportunity to even earn for their education, and it is time that we focused on systematic barriers created for people from certain caste, class, gender, ability or religion and worked on removing those.
कोविड-19 के कारण जो महामारी पूरे देश मे फैली हूई है उसके वजह से पूरे देशवासियों को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। लेकिन मैं एक दलित समुदाय से हूं जहां पर कोविड-19 के प्रभाव से दलित समुदाय को जिन चुनौतियों का सामना करना पड़ा शायद वह कभी सोचे नहीं होंगे। मैं एक मध्यवर्गीय परिवार से हूं, मेरे घर में कुल 7 लोग रहते है — मम्मी, पापा,एक बहन (जिसे हम लोगों ने गोद लिया है) और हम 4 भाई है।मेरे पापा एक मज़दूर हैं जिनके कमाई से मेरे घर का खर्च चलता है। कोविड-19 के कारण जब लॉकडाउन लगा तब सारे स्कूल, कॉलेज, और इंस्टिट्यूट भी बंद हो गए और सभी विद्यार्थियों को अपने अपने घर पर रहना पड़ा।इससे उनके जीवन में एक ऐसा मोड़ आया जिसके बारे में वह कभी सोचे भी नहीं थे, और उनके जीवन और शिक्षा को प्रभावित कर गया। खास कर हमने देखा हैं कि कोविड-19 और लॉकडाउन के कारण होने वाले प्रभाव सबसे ज्यादा अधिकांश दलित, पिछड़े, और अल्पसंख्यक वर्ग वाले छात्र और छात्राओं पर पड़ा है।
कोविड-19 ने हमारे समाज में सदियों से चली आ रही असमानताओं को और भी गहरा कर दिया है | जब मैं छोटा था मेरा नाम पियां कला गांव के माध्यमिक विद्यालय में 6 क्लास में लिखवाया गया।पियां कला एक ऊँचे जाती के लोगो का गांव है जहां पर वे लोग जैसे चाहते थे वैसे ही होता था।जैसे कि स्कूल में खाना, किताबें, छात्रवृति, स्कूल ड्रेस सबसे पहले उनके घर के लड़की लड़कों को दिया जाता था। मैंने अपने दोस्तों से पूछा कि ऐसा क्यों हो रहा है तो वे लोग बोले कि यह बड़े लोग हैं उनके बाद हमलोगों को मिलेगा | अगर हम लोग कुछ बोलेंगे तो लड़ाई झगड़ा हो जाएगा।शिक्षक से भी कहने पर वे भी ऐसा ही कहते थे। मुझे ये सब बहुत बुरा लगा, क्योंकि मेरे साथ बनारस में ऐसा नहीं हुआ था। इस महामारी के चलते अब भेद-भाव ने नए रूप ले लिए हैं |
लॉकडाउन के समय बिहार सरकार ने कहा की हम लोग छात्रों को ऑनलाइन शिक्षा देंगे और सभी छात्र अपनी-अपनी शिक्षा पूरी कर पाएंगे। लेकिन जो बड़े कास्ट के लोग या बड़े लोग हैं उनके पास तो ऐसी व्यवस्था उपलब्ध है — स्मार्ट फोन, लैपटॉप जैसी चीजें | वह लोग ऑनलाइन पढ़ाई कर सकते हैं । जो नीची जाती और समुदाय के छात्र हैं उनके पास ना ही स्मार्ट फोन ना हीं T.V. ना ही लैपटॉप है कि वह भी अपनी पढ़ाई पूरी कर सकें । इन बातों को सोच कर मेरे ही गांव के 8 से 10 छात्रों ने स्कूल छोड़ दिया।
जब सरकार ने ट्रेन चालू की तब कई लोगो ने कंपनी वालों से एडवांस में पैसा लिया और वे लोग दिल्ली,मुंबई, कोलकाता,ओर हैदराबाद जैसे जगहों पर फिर से काम करने चले गए। मुझे भी कुछ ऐसा ही करने का मन कर रहा था लेकिन मैंने अपने ही गांव में एक टियुसन खोला और बच्चों को पढ़ाना शुरू किया | जिसमें 50% बच्चे मुफ्त में पढ़ते हैं, और मैं भी अपनी भी पढ़ाई पूरा कर पाता हूं।मै आजकल फ़िज़िक्स में बी. ऐस. सी. होनोर्स की अपनी पढ़ाई कर रहा हूं, और अब अपना पूरा पढ़ाई का खर्च और अपना खर्च टियुसन पढ़ा कर और संस्था में काम कर के पूरा करता हूं।मैं आगे P.HD. करना चाहता हूं, और मुझे इंजीनियरिंग कॉलेज का टीचर बनना है।
हमारे आस पड़ोस में और भी घटनाएँ हुईं | स्कूल बंद होने के बाद मेरे यहां अप्रैल और मई 2020 में 4 लड़कियों का बाल विवाह हुआ | इनकी उम्र 14 से 16 के बीच में थी | सुनने में आता है कि उन्हें शादी के बाद बहुत सारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। एक जो लड़की थी गर्भवती होने के बाद उसे जब बच्चे को जन्म देना था तब वह जिंदगी ओर मौत से लड़ रही थी | बाद में उसका जो बच्चा था उसकी मृत्यु हो गई।
कोविड -19 के दौरान हम लोगों ने बा.स.फ की मदद से गरीब बेसरा लोगो को राशन मुहैया कराया | कुछ नए नए लोगो से परिचय भी हुआ और उन सभी लोगों ने भी हमलोगों की मदद भी की । जब मैं ब.सा.फ के साथ नहीं जुड़ा था,तब मुझे अपनी जिमेदरी क्या है ,समुदाय में कैसे – कैसे लोग रहते है,समुदाय का विकास कैसे होता है ,लोगो को क्या जरुरते है,जो गांव के किशोर – किशोरियां है उन्हे क्या चाहिए — यह सब नहीं पता था । किसी भी अधिकारियों से बात करना तो दूर उनके सामने खड़ा होने से भी डर लगता था | लेकिन जब से मैं बा.स.फ. के जुड़ा हूं तब से मैं किसी भी अधिकारी से बिना डरे आसानी से बात कर लेता हूं। हमे जो जानकरियां इस संगठन के माध्यम से मिलती है मैं उसे अन्य युवाओं तक पहुँचाता हूं | और जो भी ग़लत धारणाएं हम सभी के अंदर भारी है उसे मैं दूर करने कि कोशिश करता हूं | जैसे लिंग आधारित असामनता और जात पात का भेद भाव को मिटाना उनके हक के बारे में बातें करना इत्यादि ।
मुझे लगता है की कोविड -19 की मुश्किलों के साथ साथ हमें इन सामाजिक असमानताओं और भेद भाव को मिटाने का काम पूरे दिल और जोश से करना होगा | तभी मुझ जैसे युवाओं के सपने सच होंगे |
मेरी शिक्षा की शुरुआत सबसे पहले बनारस से हुई जहां पर मै 3 साल तक पढ़ाई किया।उसके बाद मै अपने गांव चला आया और मैंने सोचा कि स्कूल ही छोड़ दू लेकिन मजबूरी थी उस स्कूल में पढ़ना क्योंकि कोई पास में स्कूल नहीं था। दूसरे स्कूल के लिए 5 km पैदल जाना पड़ता। फिर मै 2012 में हाई स्कूल में नाम लिखाया,2014 में मैंने मैट्रिक की परीक्षा दिया और 2016 में 12th(science) में भूपेश गुप्त कॉलेज भभुआ(कैमूर) में नाम लिखवाया। मैने अपना 12th की पढ़ाई सासाराम में रह का किया और 2018 में 2nd division से पास किया। मै आज B.sc. part 1 Hons (Physic) लेकर अपना पढ़ाई कर रहा हूं, और अब अपना पूरा पढ़ाई का खर्च और अपना खर्च टीयुसन पढ़ाकर और संस्था में काम कर के पूरा करता हूं।