The Kinnar Community’s Marginalisation during COVID-19
Vijeta Singh, 30 | Uttar Pradesh
Translated from Hindi
The Kinnar community is present in some form in every part of the world. They have traditionally performed celebratory rituals to congratulate families through dancing and singing, do other work, and have been forwarding the movement for their rights. COVID-19 has impacted the entire world at the micro or macro levels. But the way it has influenced the Kinnar community is unique. This community has always been neglected and at the marginalised, whether before the pandemic or during.
Imagining this very thing in itself is very frightening. If COVID-19 has affected the lives and ways of living of ordinary human beings then what about the community that is not considered a part of society, how could it have remained untouched by it? I am a research student and my research subject is the transgender community. Hence, I have seen the problems of the Kinnar community of Varanasi very closely. This community remains deprived. During the pandemic, many non-governmental organizations started their efforts to help the people. However, government and non-government organizations did not pay any special attention to the Kinnar community, nor did they help them in any way.
I am sharing the experience of Saroj (fictitious name) who lives in Varanasi. Saroj wonders what punishment has God given them for being born this way. Family members rejected them and left them alone in this world. Life already seemed difficult, now it seems suffocating. She says people stare at us, they look at us with neglect, and mock us. We are not seen as human beings like other people. That is why we do not get the opportunity for education, and health facilities are not available, no one provides employment, they cannot do any business. If 2-4 people together do some work, due to the prevailing beliefs in the society, their business does not run successfully. Some may consider them ‘godly’, but in an odd situation like Corona, neither this society nor any government or non-government organization helped them. All our traditional forms of work have come to a stop and life started to get unmanageable. We did not understand what to do.
Saroj told me – Didi you must have seen and read that people are giving ration to help each other.
They are giving clothes, shoes and slippers, even fodder is being kept for cattle, but nothing is being done for our community. Are we worse than animals? Seeing this now, I’m losing the will to live. Economic circumstances, many people migrated home so that they’d get financial help, and food and water. But we do not have a family, where do we go? Are we responsible for being born in this body? The Supreme Court gives us the status of third gender but society doesn’t consider us human, let alone treat us as equals. We could die of hunger. We have no means of employment and our resources are getting exhausted. We cannot go to homes to perform celebratory rituals, or do sex work because of the pandemic’s restritions. This is how our lives are affected. Our health problems are not being solved, and so many of our community are struggling with the problems of depression and mental illness.
किन्नर समुदाय विश्व के हर देश में किसी न किसी रूप में विद्यमान है तथा अपने जीवन निर्वहन के लिए किन्हीं साधनों का उपयोग करता है फिर वो चाहे बधाई हो, नाच –गाना हो, जिस्मफरोशी हो, कोई नौकरी या रोजगार हो, या अपने अधिकारों के लिए आन्दोलन हो | COVID-19 ने पुरी दुनिया को सूक्ष्म या वृहद् स्तर पर प्रभावित किया है| और विशेषकर जब हम बात करते है किन्नर समुदाय की तो ये समुदाय सदैव से उपेछित तथा हाशिये पर रखा गया है चाहे कोरोना काल हो या नहीं | इस बात की कल्पना करना भी अपने आप में बहुत ही भयावह है | कोरोना ने यदि सामान्य मनुष्य का जीवन तथा जीवन जीने के तरीके को प्रभावित किया है तो जो वर्ग समाज का अंग ही नहीं समझा जाता वह इससे कैसे अछूता रहा होगा |
मैं एक शोध छात्रा हूं और मेरा शोध विषय ही किन्नर समुदाय है | इस वजह से वाराणसी के किन्नर समुदाय की समस्याओं को बहुत करीब से जाना एवं देखा है| फिर वो कोरोना काल से पूर्व की स्थिति हो या बाद की| यदि बात की जाये वाराणसी क्षेत्र के किन्नर समुदाय की तो ये तबका बहुत पढ़ा लिखा न होने की वजह से अन्य पिछड़े वर्ग (जैसे अनुसूचित जाति, अनुसूचित जन-जाति, अन्य पिछड़ा वर्ग) को मिलने वाली सुविधाओं से वंचित रह जाता है | कोरोना काल में बहुत से गैर-सरकारी संगठनो ने समाज के लोगो के मदद के लिए अपने दरवाजे खोले | चाहे वो किसी विशेष विषय क्षेत्र में काम करते हो अथवा नहीं | परन्तु सरकारी तथा गैर-सरकारी संगठनों ने किन्नर समुदाय पर कोई बहुत विशेष ध्यान नहीं दिया ना हीं मदद की | मैं यहां ‘सरोज’ (काल्पनिक नाम) के अनुभवों को साझा कर रही हूँ जो वाराणसी में रहने वाली एक किन्नर है |
सरोज ने बताया की भगवान ने हमें जाने किस बात की सजा दी जो ये जन्म मिला | घर-परिवार वालों ने भी किसी काम का न समझा जो इस दुनिया में अकेला छोड़ दिया | एक तो परेशानियां पहले ही ज्यादा थी बाकि की जो रही-सही कसर थी वो कोरोना ने पूरी कर दी है | जीवन जीना ऐसे ही दूभर था अब तो लगता है की दम घुटने लगा है| लोग हमे देख कर फ़ब्तिया कसते है , उपेछित नजरों से देखते है , माखौल उड़ाते है | हमें अन्य लोगो की तरह इन्सान ही नही समझा जाता | तभी तो हमे शिक्षा का अवसर नही मिलता , स्वास्थ्य की सुविधाये नही मिलती , कोई रोजगार नहीं देता ,हम कोई व्यवसाय नहीं कर सकते| अगर 2-4 लोग मिल कर कुछ काम करें भी तो समाज में प्रचलित मान्यताओ के कारण व्यवसाय चलता नही |
कहने को हम ‘उपदेवता’ हैं लेकिन कोरोना जैसे विषम परिस्थिति में भी ना तो इस समाज ने, न ही किसी सरकारी अथवा गैर – सरकारी संगठन ने हमारी मदद की | हमारे पारम्परिक कार्य बधाई (नाच-गाना) एवं अन्य कार्य जैसे जिस्मफरोशी से मिले पैसे से ही एक दूसरे की सहायता करके जैसे-तैसे काम चल रहा था | लेकिन अब तो वो भी समाप्त हो गया है | जिंदगी बोझिल होने लगी है | स्वास्थ्य सुविधायें पहले ही कम थी अब वो भी सीमित हो गई है | समझ नही आ रहा है क्या करें |
सरोज ने मुझसे कहा – दीदी आपने देखा और पढ़ा भी होगा की लोग एक दूसरे की मदद के लिए राशन दे रहे हैं, कपडे,जूते-चप्पल दे रहे हैं, यहाँ तक की गाय – भैंस के लिए भी जगह-जगह चारा रखा जा रहा है | लेकिन हमारे किन्नर समाज के लिए कुछ नही किया जा रहा| क्या हम पशुओं से भी गए गुजरे है? ये देख कर अब जीवन जीने की इच्छा ही ख़तम हो रही है | आर्थिक परिस्थितियों के कारण सभी लोग अपने गांव-घर को पलायन कर रहे है जिससे उनको आर्थिक सहायता मिले उन्हें खाने-पीने की दिक्कत ना हो | लेकिन हमारे पास तो घर-परिवार भी नहीं है | हम कहाँ और किसके पास जाये? अगर हमारा जन्म ऐसे शरीर में हुआ है तो क्या इसके लिए हम जिम्मेदार हैं ?
सर्वोच्च न्यायालय हमे तीसरे लिंग का दर्जा देता तो है लेकिन समाज हमें ना तो अपनाता है ना ही मनुष्य के समान व्यवहार करता है | अगर करता तो आज हमे भूखे मरने के नौबत ना आती| अब धीरे–धीरे कोरोना काल में रियायत मिल रही है लेकिन हमारे पास बधाई मांगने और जिस्मफरोशी के अलावा कोई रोजगार का साधन नहीं है जिससे हम आय अर्जित कर जीवनयापन कर सकें | कोरोना की वजह से लोग एक दूसरे के पास आने से डर रहे हैं, ऐसे में कोई घरों में बधाई के लिए आने से मना कर दे रहा है | जिस्मफरोशी का तो सवाल ही नहीं उठता है | इस स्थिति में आय के स्रोत लगभग समाप्त हो गये है | यही कारण है की हमारा जीवन प्रभावित हो रहा है साथ ही साथ स्वास्थ्य की समस्याओं का भी उचित समाधान नहीं हो पा रहा है , हमारे समुदाय के कई लोग अवसाद तथा मानसिक व्याधियों की समस्याओं से भी जूझ रहे हैं |